गुप्त काल हिस्ट्री इन हिंदी/gupta kal history in hindi
नमस्कार दोस्तों समान्यज्ञान के सीरीज में हम भारत में गुप्त कालीन हिस्ट्री को जानेंगे इस पोस्ट में गुप्त काल का उदय , गुप्त काल के शासक , शासकों के उपाधि ,गुप्त साम्राज्य का पतन ,क्यों हुआ इसकी पूरी जानकारी दिया जायेगा। इसके लिए आप इस पोस्ट को अंत तक जरूर पढ़ें।
कुषाण वंश के पश्चात गुप्त साम्राज्य का प्रादुर्भाव हुआ। गुप्त वंश मौर्य कल के बाद स्वर्णयुग था इस वंश की नीव श्री गुप्त ने की थी।
गुप्त काल के शासक
श्री गुप्त -240 -280 ई तक
- पूना स्थित ताम्र पत्र में इसका उल्लेख आदिराज के रूप में मिलता है।
- श्रीगुप्त ने महाराज की उपाधि धारण की थी।
- इत्सिंग के अनुशार श्रीगुप्त ने एक मंदिर बनाया जिसमे उसने 24 गाँव दान में दिए।
- इनका शासन काल 280 ई तक रहा।
घटोत्कच गुप्त -
शासन कल - 280 से 319 ई तक
उपाधि -महाराज
रीद्धपुर ताम्रपत्र अभिलख में प्रथम शासक बताया गया है।
चन्द्रगुप्त प्रथम -
- शासन काल - 319 से 335 ई तक
- उपाधि - महाराजाधिराज
- गुप्त वंश के प्रथम प्रसिद्द शासक हुए।
- चन्द्रगुप्त प्रथम की पत्नी राजकुमारी कुमार देवी था।
- इसने सबसे पहली रजत (चांदी) के मुद्राओं का प्रचलन प्रारम्भ किया।
- गुप्त संवत का प्रारम्भ 319 ई में चन्द्रगुप्त प्रथम किया गया।
समुद्र गुप्त
- शासनकाल - 335 से 380 तक
- उपाधि -पराक्रमांक
- भारत का नेपोलियन कहा जाता है।
- व्ही ए स्मिथ ने आपको भारत का नेपोलियन कहा।
- इसके दरबारी कवि थे - हरिषेण
- समुद्र गुप्त के शासन काल में गुप्त साम्राज्य विस्तार अधिक हुआ।
- समुद्र गुप्त द्वारा विजित क्षेत्र को पांच भागो में बांटा जा सकता है।
- पहला - गंगा -जमुना दोआब के शासक जिन्हे पराजित कर अपने साम्राज्य में मिला लिया था।
- दूसरा - पूर्वी हिमालय - के राज्य जैसे नेपाल ,असम ,बंगाल।
- तीसरा - आटविक राज्य (जो जंगली क्षेत्र में पड़ते थे) जो विंध्य क्षेत्र में पड़ते थे।
- चतुर्थ - पूर्वी दक्कन और दक्षिण भारत के क्षेत्र जिसके अंतर्गत 12 शासकों को पराजित किया।
- श्रीलंका के राजा ने गया में बुद्ध मंदिर बनवाने के लिए अपना दूत भेजा था। ..
- समद्र गुप्त वीणा बजाते थे इनके सिक्के में अश्वमेध और व्यगरराज अंकित होता था।
- इन्हे सौ युद्धो के विजेता बताया गया है।
- समुद्र गुप्त अपने आप को लिच्छवि दौहित्र कहलाने में गर्व का अनुभव करता था ।
चंद्रगुप्त द्वितीय
- शासनकाल -380-412ई
- उपाधि - विक्रमादित्य
- चंद्रगुप्त द्वितीय ने अपने पुत्री (प्रभावती)का विवाह वाकाटक शासक रुद्रसेन द्वित्तीय से कराया जो मध्यभारत का शासक था ।
- चन्द्रगुप्त द्वितीय ने सर्वप्रथम रजत मुद्राओं का प्रचलन कराया था.
- चन्द्रगुप्त द्वितीय का उज्जैन स्थित दरबार में कालिदास और अमरसिंघ जैसे विद्वान् थे।
चन्द्रगुप्त द्वितीय के दरबारी रत्न
रत्न क्षेत्र कृति रचना
- हरिषेण - कवि - कविता
- वराहमिहिर - खगोल विज्ञान - वृहद्संहिता
- वररुचि - व्याकरण - व्याकरण संस्कृत
- धन्वन्तरि - चिकित्सा आयुर्वेद
- क्षपणक - ज्योतिष विद्या - ज्योतिष शास्त्र
- अमरसिंह - शब्दकोष रचना - अमरकोश
- कालिदास - नाटक व काव्य - अभिज्ञानशाकुंतलम
- शंकु - वास्तुकला - शिल्पशास्त्र
- वेताल भट्ट - जादू -- मन्त्र शास्त्र
कुमार गुप्त प्रथम -.
- कुमार गुप्त चन्द्रगुप्त द्वितीय के पुत्र थे।
- शासन काल - 415 से 455 ई.
- उपाधि - महेन्द्रादित्य ,श्रीमहेंद्र
- इसने अश्वमेध यज्ञ करवाया और अश्वमेध नामक मुद्रा चलाया।
- कुमार गुप्त प्रथम के शासन काल में नालंदा विश्व विद्यालय की स्थापना किया गया। और विश्वविद्यालय मे समय देखने के लिए जल घडी का प्रयोग किया जाता है।
- कुमार गुप्त के समय के सर्वाधिक अभिलेख प्राप्त हुए है। जिसकी संख्या 18 है।
- गुप्त कालीन सबसे बड़ा स्वर्ण मुद्रा भंडार बयाना मुद्राभंडार जो राजस्थन से प्राप्त हुआ है। जिसकी संख्या 623 है
- गुप्त कालीन मयूर शैली की मुद्राये सबसे पहले मध्यप्रदेश से प्राप्त हुआ है।
- कुमार गुप्त के एंटी समय में पुष्यमित्र नमक जाती के आक्रमण किया। इसका उल्लेख स्कंदगुप्त के आंतरिक अभिलेख में मिलता है। और स्कंदगुप्त ने पराजित किया था।
स्कंदगुप्त (शक्रादित्य) 455 -467 तक
- शासनकाल -455 से 467 ई.
- उपाधि - शक्रादित्य
- स्कंदगुप्त कुमारगुप्त का पुत्र था।
- स्कंदगुप्त के शासन काल में हूणों का आक्रमण हुआ था। और गुप्त वंश के कुछ भाग में अधिकार जमा लिए।
- जुनागढ अभिलेख में स्कंदगुप्त का वर्णन मिलता है। इस अभिलेख से ये भी पता चलता है की सौराष्ट्र प्रान्त में उसने पर्णदत्त को अपना राज्यपाल न्युक्त किया था।
- जूनागढ़ अभिलेख में गिरनार के प्रशासक चक्रपालित द्वारा सुदर्शन झील में बांध का पुननिर्माण कराया गया।
- व्हेनसांग ने नालंदा संघाराम को बनवाने वाले शासकों में शंकरदित्य का उल्लेख किया है।
- स्कन्दगुप्त के उत्तराधिकारी पुरुगुप्त थे ।
- शासनकाल -467-476ई.
- पुरुगुप्त स्कन्दगुप्त का सौतेला भाई था ।
- भीतरी मुद्रालेखन में उसकी माँ का नाम महादेवी अनंत देवी तथा पत्नी का नाम चंद्रदेवी मिलता है ।
- इसके शासन काल से ही गुप्त वंश का अवनाति प्रारम्भ हुआ था ।
कुमारगुप्त द्वितीय -
- शासन काल -473ई
- इनका उल्लेख सरनाथ के बुद्धप्रतिमा में मिलता है ।
- सारनाथ के लेख में इनका नाम भूमि रक्षित कुमारगुप्तमिलता है ।
बुद्धगुप्त
- इसके शासनकाल की तिथि गुप्त संवत-157 अर्थात 477 ई को सारनाथ अभिलेख में मिलता है ।
- बुद्धगुप्त ने परंभट्टरक महाराजाधिराज की उपाधि धारण की थी।
- शासनकाल - 477-495ई
- स्वर्ण मुद्राओं पर उसकी उपाधि श्रीविक्रम मिलता है ।
- बुद्धगुप्त बौद्ध अनुयायी था इसका विवरण चिनियात्री व्हेनसांग द्वारा किया गया है ।
नरसिंहगुप्त
- नरसिंहगुप्त बुद्धगुप्त का छोटा भाई था ।जो बुद्धगुप्त के मृत्यु के पश्चात शासन किया ।
- इसने हूण नरेश मिहिरकुल को पराजित किया था ।
- नरसिंहगुप्त ने बौद्ध विद्वान बसुबन्धु से बौद्ध दीक्षा ली ।
- नालंदा मुद्रालेख में नरसिंह गुप्त को परमभागवत कहा गया है।
भानुगुप्त -
- भानुगुप्त का शासन काल 510 ई था।
- एरण के स्तम्भ अभिलेख से प्राप्त हुआ है जिसमे सतीप्रथा का प्रथम प्रमाण मिलता है।
- इनका उल्लेख बांग्लादेश के कोमिल्ला ताम्रपत्र से प्राप्त होता है।
- इनका उल्लेख 507 ई.में मिलता है।
- कुमारगुप्त तृतीय गुप्तकालीन अंतिम महान शासक था।
- दमोदपुर के 5 वे ताम्रपत्र में इनका उल्लेख मिलता है।
- इसने परमदैवत परमभट्टाकार ,और महाधिराज की उपाधि धारण की थी।
- इनका शासन काल गुप्तसंवत - 224 अर्थात 543 ई माना गया है।
- कुमारगुप्त तृतीय के पुत्र थे।
- शासनकाल 550 ई. को माना जाता है।
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